(कश्मीर की कहानी: आतंकवाद की प्रयोगशाला का जन्म और विकास): समीक्षा

लेखक कमलाकांत त्रिपाठी के ' कश्मीर की कहानी: आतंकवाद की प्रयोगशाला का जन्म और विकास ' वर्तमान के परिपेक्ष्य में बहुत रिलेवेंट है । इस लेख सीरीज में लेखक ने जम्मू कश्मीर के इतिहास, भूगोल, राजनीति, समाज, अर्थतंत्र, धर्म, मनोविज्ञान आदि का जो दार्शनिक प्रस्तुतीकरण किया है वह अप्रतिम है। प्रत्येक सर्ग में लेखक की पक्षपातविहीन टिप्पणी सन्दर्भ के विभिन्न पहलुओं की ओर इंगित करती है। जम्मू-कश्मीर के विलय तथा अन्य घटनाक्रम में त्रिपाठी जी ने  नेहरू, जिन्ना, गाँधी, राजा हरी सिंह, शेख अब्दुल्ला आदि तत्कालीन प्रसिध्द नेताओं के रोल की उल्लेखनीय गहराई से विवेचना की है। साथ ही साथ इस लेख में अनेक ऐसे अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों का वर्णन आया है जिनका अन्य सम्बंधित सन्दर्भों में बहुत कम उल्लेख आया है । लेख के अंत के कुछ सर्गों में लेखक के दार्शनिक पक्ष का विशेष दर्शन प्राप्त होता है। उन्होंने बड़े नेताओं की हिपोक्रेसी और स्ट्रेटेजिक फेलियर का उल्लेख बड़ी साफगोई से किया है। इसके अतिरिक्त इस लेख में अमेरिका और रूस की रस्साकसी, पाकिस्तान की राजनीति और धर्म के अन्तर्सम्बन्ध के ट्रेंड और विकास, अनेक आतंकी संगठनों के निर्माण, विकास, पतन तथा कृत्यों का भी जिक्र सप्रमाण प्रदत्त है। उनके द्वारा द्वारा रेखांकित धर्म (मुख्यतः अतर्क्यवाद से सम्बंधित) और मनुष्य की मूल प्रवृत्ति के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन वर्तमान परिपेक्ष्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है। लेख में हिंदी भाषा के साथ साथ यदा कदा उर्दू अंग्रेजी तथा अन्य भाषाओँ का प्रयोग भी हुआ है। लेख में अनेक स्थानों पर सन्दर्भ की कमी नज़र आती है, जिसके अभाव में तथ्यों को उचित भार नहीं मिलता है, फिर भी लेख में पर्याप्त डेप्थ और ब्रेड्थ होने के कारण जम्मू कश्मीर के सन्दर्भ में जानकारी तथा पर्सपेक्टिव के लिए यह लेख एक सन्दर्भ के रूप में महत्वपूर्ण है।  


© अमित तिवारी

कश्मीर की कहानी: आतंकवाद की प्रयोगशाला का जन्म और विकास एक समसामयिक लेख सीरीज़ है जिसके  लेखक कमलाकांत त्रिपाठी भारतीय राजस्व सेवा के कमिश्नर पद से रिटायर्ड लब्धप्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। उपरोक्त सीरीज़ के लिए यह समीक्षा लेख 12 अगस्त 2021 को लिखा गया।

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