प्रणाम (9 अप्रैल 2016)
मैं गिरा मात तव व्यग्र
मैं उठा तेरा उत्साह
अहा वह दर्शनीय
कितना पवित्र वह प्रेम
सफलता मेरी, तेरा वो हर्ष
विफलता पर वो दिया विमर्श
प्रेरित करता अपि आज ।।
होती चाहे तुम दूरकिन्तु वह नेह,
प्रदर्शित करता मेरा मार्ग
तेरी सीखों से भरी वो डांट
दिखाए मुझे आज सन्मार्ग ।।
सही या गलत कौन सी बात
बचपन में शून्य ये ज्ञान
कराया तुमने ही ये भान
प्रथम गुरु तेरा सम्मान,
नेह की तव अतिरेक
दयायुक्त मात तव नेक
रोम रोम से आठों याम
अंतस्थल से तुम्हे प्रणाम ।।
© अमित तिवारी
(माँ को समर्पित ये रचना 9 अप्रैल 2016 को लिखी गयी)
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