मेघ और इन्दु (12 मई 2017)

सहसा नेत्रों का ध्यान 

अहा वह अँधेरे का दूज इन्दु 

मेघों से बाहर आने को 

यह अमित द्वंद्व

या सहज रूप में चाह रही 

करनी क्रीड़ा उससे बहु मंद।।

                                            घन के अंदर निश्तेज
 
                                            मनो जीवन दुःख से संतप्त
 
                                            किन्तु क्षणमात्र, पुनः वह तेज

                                            मनो जीवन संगीत के राग सप्त।। 

उत्तम रूपक यह प्रकृति चित्र 

जीवन में सुख दुःख का चरित्र 

सुख का कलरव दुःख का क्रंदन 

इनका चक्रण कितना विचित्र।।    


© अमित तिवारी

(ये रचना 12 मई  2017 को लिखी गयी)

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