उससे सीखा (11 अप्रैल 2016)
उससे सीखा
जो भी सीखा उससे ही तो सीखा,
अत्यंत कठिन आरोह, किन्तु
त्यागकर प्राण का मोह
लक्ष्य ही एकमात्र प्रारब्ध
हे सूक्ष्मजीव उत्साहलब्ध
वैन्त्योः इसे तुमसे सीखा।।
किससे सीखा था परोपकार गुण सत्व मनुजों का जो मनुजत्व
हे तरु ये तुमसे ही सीखा
यद्यपि वह पूर्ण नहीं फिर भी
जो लेशमात्र या अंशमात्र भी है
हमने तुमसे सीखा।।
औरों का भार वहन करना
सब योग्य अयोग्य सहन करना
हे मातृरूप धरणी
यह तो तुमसे सीखा।।
हे प्रकृति, मनुज के सत्व कर्मप्रेरित तुमसे, यह मर्म
विविध रूपों से अनूदित भाव
गिरि, व्योम, सूर्य या वायु
इन सबसे हमने कुछ सीखा
हमारी सीख और यह सार
वह मनुजों का मनुजत्व
प्रकृति के अंशमात्र का तत्व।।
© अमित तिवारी
(प्रकृति को समर्पित ये रचना 11 अप्रैल 2016 को लिखी गयी)
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