दुःख का साथी (09 सितम्बर 2016)
दुःख का साथी
गर मिले कभी जो तुम्हे
दुर्लभ यद्यपि
फिर भी मिलता है अगर
लेना उससे एक बात पूछ
हे मनुज रूप तुम भूप
देखा मैंने रिश्ते जुड़ते कुछ स्वार्थ हेतु
किन्तु हे मनुज देव के सेतु
तुम्हारा कैसा ये व्यापार
मिलेगा तुम्हे भी दुःख उपहार।।
देगा उत्तर संशय इसमें पर उसे मिला वरदान
ईश का अनुपम गुण यह मान
दया करुणा का पाया दान
दुखों में द्रवित दुखी के समान
तेरे दुःख का साथी वह जान।।
© अमित तिवारी
(ये रचना 9 सितम्बर 2016 को लिखी गयी)
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